शनिवार, 11 जनवरी 2014

कॉरीडोर में बागीचा बना दें




जिनी अब चार की हो चुकी है। वो खुद से कविताएं बनाती है। बीते दिसंबर के महीने में मैंने कहा सर्दियों की कोई अच्छी सी कविता बनाओ तो कहती है - नहीं मैं गर्मियों की कविता बनाऊंगी, मैंने पूछा क्यों, तो जवाब दिया -ताकि सर्दियां कम पड़ें। हा-हा..। जिनी की कही दो कविता और दो छोटी कहानी, जिसे मैं लिखभर रही हूं।

मेट्रो
मेट्रो चलती है और रुकती है
जब मेट्रो का दरवाजा खुलता है
सारे लोग आते हैं
फिर मेट्रो चलती है और रुकती है।
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सर्दियां-सर्दियां
प्यारी प्यारी सर्दियां
सर्दियों में बहुत ठंड लगती है
सर्दियों में बर्फ़ गिरती है
मगर पहाड़ों में ही बर्फ गिरती है
हमारे यहां नहीं गिरती है
हम पहाड़ों पे घर बनाएंगे
सर्दियां-सर्दियां
प्यारी-प्यारी सर्दियां।
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 दरवाजा-खिड़की साथ खेल रहे थे

एक बार दरवाजा और अलमारी साथ-साथ खेल रहे थे। तभी वहां कई सारी कलर पेसिंल आ गईं। वो गुस्सा हो गईं क्योंकि दरवाजा और अलमारी उन्हें साथ नहीं खिला रहे थे, वो रोने लगीं, तभी बटरफ्लाई आई, कलर्स को रोते देखकर बहुत गुस्सा हुई, दरवाजे और अलमारियों को डांट लगाई। कलर पेंसिलों को रोते देखकर दरवाजे-अलमारी उनके साथ खेलने लगे। दीवार भी उनके साथ खेलने लगा और खिड़की भी। सब मिलकर खेलने लगे। बहुत मजा आया।
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कॉरीडोर में बागीचा बना दें

बटर फ्लाई उदास थीं, उनका खेलने का मन कर रहा था, लेकिन कहीं भी फूल नहीं थे, बटर फ्लाई कहां खेलतीं। बटर फ्लाई तो फूलों के साथ ही खेलती हैं, उनका रस पीती हैं। छोटी बच्ची उदास हो गई। उसने अपनी मम्मा से फूल लगाने को कहा, ताकि ढेर सारी बटर फ्लाई आ जाएं। मम्मा ने कहा यहां तो बस गमले में ही फूल लग सकते हैं, यहां ज़मीन तो है नहीं जिस पर फूल उगा सकें और बटर फ्लाई आ सके। छोटी बच्ची को एक आइडिया आया। बारहवीं मंजिल पर उसके घर के बाहर एक लंबा सा कॉरीडोर था। बच्ची ने अपनी मम्मा से कहा वो रोज पार्क से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी लेकर आया करेगी और कॉरीडोर में डाल देगी। एक दिन कॉरीडोर मिट्टी से भर जाएगा, फिर वो उसमें फूल उगाएगी, फिर बटर फ्लाई आएगी, बटर फ्लाई ख़ुश हो जाएगी, बड़ा मज़ा आएगा।


(जिनी की ये रचनाएं कलरव पत्रिका में भी प्रकाशित हुईं)

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